वित्त मंत्रालय का कहना है कि भारत सरकार मौजूदा वित्त वर्ष में 14 लाख करोड़ से अधिक का कर्ज लेने जा रही है। क्यों?

आजादी के बाद से वर्ष 2014 तक, 67 सालों में देश पर कुल कर्ज 55 लाख करोड़ था।

पिछले 10 वर्ष में अकेले मोदी जी ने इसे बढ़ाकर 205 लाख करोड़ पहुंचा दिया।

इनकी सरकार ने लगभग 150 लाख करोड़ कर्ज लिया बीते 10 साल में।

आज देश के हर नागरिक पर लगभग डेढ़ लाख का औसत कर्ज बनता है।

यह पैसा राष्ट्रनिर्माण के किस काम में लगा?

⚡️क्या बड़े पैमाने पर नौकरियाँ पैदा हुईं या दरअसल नौकरियाँ तो गायब हो गईं?

⚡️क्या किसानों की आमदनी दोगुनी हो गई?

⚡️क्या स्कूल और अस्पताल चमक उठे?

⚡️पब्लिक सेक्टर मजबूत हुआ या कमजोर कर दिया गया?

⚡️क्या बड़ी-बड़ी फ़ैक्ट्रियाँ और उद्योग लगाये गये?

अगर ऐसा नहीं हुआ, अगर अर्थव्यवस्था के कोर सेक्टर्स में बदहाली देखी जा रही है, अगर श्रम शक्ति में गिरावट आई है, अगर छोटे-मध्यम कारोबार तबाह कर दिए गए – तो आखिर यह पैसा गया कहाँ? किसके ऊपर खर्च हुआ? इसमें कितना पैसा बट्टेखाते में गया? बड़े-बड़े खरबपतियों की कर्जमाफी में कितना पैसा गया ?

अब सरकार नया कर्ज लेने की तैयारी कर रही है तो सवाल उठता है कि पिछले 10 साल से आम जनता को राहत मिलने की बजाय जब बेरोजगारी, महंगाई आर्थिक तंगी का बोझ बढ़ता ही जा रहा है तो भला भाजपा सरकार जनता को कर्ज में क्यों डुबो रही है ?

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